उपवास की महत्ता || Importance of fasting || health-care
उपवास को शास्त्रों में पापों का एक श्रेष्ठ प्रायश्चित बताया है | एकादशी , रविवार एवं व्रत पर्वों के दिनों लोग बड़ी श्रधा और भावनापूर्वक उपवास करके आत्म शुधि का आयोजन करते है | चान्द्रायण व्रत में एक महीने का उपवास करना पड़ता है और उससे अनेक पापों का प्रायश्चित होने की आशा रखी जाती है | यह धार्मिक उपवास अब रुड़ी बन जाने से उनमें बहुत प्रकार का बहुत कुछ खाते रहने की तरकीबे निकाल ली गई है | पर प्राकृतिक चिकित्सा में अनिवार्य रूप से शारीरिक पापों का प्रायश्चित तो प्रत्यक्ष ही हो जाता है |

मानसिक पापों की शुधि भी होनी निश्चित है | गीता में उपवास को विषय वासनाओं से निव्रत्त में उपवास को अनिवार्य ही माना है | एकादशी माहात्म्य की वह कथा प्रसिद्ध जिसमे अनजाने लड़ाई – झगड़े के कारण एकादशी के दिन एक धोबिन के कुछ न खाने पर इतना पुण्य मिल गया था की उसके स्पर्श से देवताओं का टूटा हुआ विमान भी आकाश में उड़ जाने योग्य बना था | फिर प्राकृतिक चिकित्सा में कराये जाने वाले उपवास मानसिक स्थिति में सात्विकता लाने वाले क्यों सिद्ध न होंगे | इस कठोर आत्म नियंत्रण और इन्द्रीय निग्रह का चिकित्साथी की मनोदशा पर प्रभाव क्यों न पड़ेगा |
अन्य चिकित्सा प्रणालियों में एक मिनट में दवा देकर डॉक्टर अपने रोगी से अलग हो जाता है, उसे कोई जरूरत नहीं है की अपनी ओषधि का सारा विज्ञान समझावे अथवा रोग उत्पत्ति के हेतु एवं भविष्य में उससे बचे रहने के तत्वज्ञान को रोगी के सामने रखें | पर प्राकृतिक चिकित्सक को मिट्टी – पानी जैसे बिना मूल्य के तुच्छ समझे जाने वाले पदाथों की महता को , अपनी अजनबी चिकित्सा प्रणाली की विशेषता को समझाना पड़ता है |
समझाये बिना रोगी के कोतूहल एवं विश्वास का समाधान नहीं हो सकता है | प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान को भली प्रकार समझ लेने पर रोगी भविष्य में उन नियमो में चलने के लिए निष्ठावान हो जाता है | फलस्वरूप सदा के लिए न केवल उनका दवादारू से पीछा छूटता है, वरन सात्विक गतिविधियों को अपनाने से शरीर को स्वस्थ रखने के साथ - साथ मनोबल भी प्रचुर मात्रा में बढने लगता है | जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए यह मनोबल देह की जीवनी शक्ति से किसी भी प्रकार कम मूल्यवान नहीं है |